डीआईजी डी.एस. मान ने कहा “जरूरत के वक्त सीखी गई तकनीक किसी की जान बचा सकती है”
अजमेर (अजमेर मुस्कान)। भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा आयोजित राष्ट्रव्यापी कार्डियो–पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) जागरुकता सप्ताह के अंतर्गत सीआरपीएफ ग्रुप-2 के सहयोग से मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, अजमेर द्वारा एक सीपीआर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस प्रशिक्षण में मित्तल हॉस्पिटल की क्वालिटी कंट्रोल मैनेजर कविता लालवानी एवं नर्सिंग स्टाफ महेश कुमार योगी ने सीआरपीएफ ग्रुप केंद्र दो के सिपाहियों को सीपीआर देने की व्यावहारिक एवं तकनीकी जानकारी दी।
कविता लालवानी ने बताया कि सीपीआर (कार्डियो–पल्मोनरी रिससिटेशन ) एक ऐसी आपातकालीन तकनीक है जो किसी व्यक्ति के दिल की धड़कन या साँस रुक जाने की स्थिति में दी जाती है।
यह तकनीक सीने पर बार-बार दबाव (चेस्ट कम्प्रेशन) और मुँह से साँस (रेस्क्यू ब्रिथिंग) के संयोजन से रक्त प्रवाह व ऑक्सीजन आपूर्ति को पुनः चालू करने में मदद करती है।
लालवानी ने बताया कि सीपीआर देने से पहले कुछ बाते ध्यान रखनी जरूरी होती हैं जिनमें व्यक्ति की साँस व नब्ज की जाँच किया जाना प्रमुख है। यदि व्यक्ति बेहोश है और साँस नहीं ले रहा, तो सीने के बीचों-बीच तेज़ और गहरे दबाव (प्रति मिनट लगभग 100–120 बार) दिया जाता है, हर 30 दबावों के बाद 2 बार कृत्रिम साँस भी दी जाती है। इस बीच एम्बुलेंस या मेडिकल सहायता बुलाने के प्रयास भी किए जाते हैं। सीपीआर तब तक जारी रखनी होती है जब तक व्यक्ति में प्रतिक्रिया न दिखे या चिकित्सकीय सहायता न पहुँच जाए।
कार्यक्रम के दौरान डीआईजी जीसी-2 सीआरपीएफ अजमेर डी.एस. मान, कमांडेंट (चिकित्सा) डॉ. वी.के. सिंह, उप कमांडेंट महेश कुमार और उप कमांडेंट अजय कुमार उपस्थित रहे।
डीआईजी डी.एस. मान ने प्रशिक्षक कविता लालवानी को पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक स्वरूप पौधा भेंट कर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि “सीपीआर जैसी जीवनरक्षक तकनीक तब सार्थक होती है जब यह किसी जरूरतमंद की जान बचाने में काम आए।
प्रशिक्षण प्राप्त कार्मिक इस ज्ञान को आगे साझा करें और आपात स्थिति में बिना देर किए मदद को आगे बढ़ें।”
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार की मंशा है कि सीपीआर तकनीक का ज्ञान हर नागरिक को होना चाहिए, क्योंकि यह तकनीक अस्पताल पहुँचने से पहले भी कई जिंदगियाँ बचा सकती है।
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