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महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का त्रयोदश दीक्षांत समारोह आयोजित

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का त्रयोदश दीक्षांत समारोह आयोजित

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का त्रयोदश दीक्षांत समारोह आयोजित

2047 तक भारत को विश्वगुरु बनाने में युवाओं की निर्णायक भूमिका : बागड़े

अजमेर (अजमेर मुस्कान)। राज्यपाल एवं कुलाधिपति हरिभाऊ बागड़े ने कहा कि दीक्षांत समारोह विद्यार्थियों के जीवन में एक नए आरंभ का प्रतीक है। उपाधि प्राप्त करना ही लक्ष्य नहीं होना चाहिए। इसके साथ बौद्धिक क्षमता, नैतिक मूल्यों और राष्ट्र के प्रति दायित्वबोध का विकास भी उतना ही आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह समावर्तन संस्कार प्राचीन भारतीय परंपरा से जुड़ा है। इसमें गुरु शिष्यों को अंतिम उपदेश देते थे। सत्य के मार्ग पर चलने, धर्म का आचरण करने और शिक्षा पर अहंकार नहीं करने की सीख देते थे।

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का त्रयोदश दीक्षांत समारोह गुरुवार को विश्वविद्यालय के सत्यार्थ सभागार में गरिमामय एवं भव्य वातावरण में आयोजित हुआ। समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल एवं कुलाधिपति बागड़े ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं विश्वविद्यालय गीत के साथ हुआ।

राज्यपाल एवं कुलाधिपति बागड़े ने विभिन्न संकायों के 54 शोधार्थियों को विद्या वाचस्पति पीएचडी की उपाधि प्रदान की। साथ ही वर्ष 2020 से 2025 के मध्य उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन करने वाले 2 विद्यार्थियों को कुलाधिपति पदक तथा वर्ष 2023, 2024 एवं 2025 में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले 40 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया गया।

राज्यपाल ने अजमेर के ऎतिहासिक महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि अजमेर का प्राचीन नाम अजयमेरु रहा है। इसे चौहान शासक अजयराज ने बसाया था। उन्होंने महर्षि दयानंद सरस्वती को युगपुरुष बताते हुए कहा कि वेदों की ओर लौटो का उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने शिक्षा को व्यवहार से जोड़ने, चरित्र निर्माण, आत्मविकास, ब्रह्मचर्य, योग, प्राणायाम, वेद-उपनिषद तथा मातृभाषा और संस्कृत में अध्ययन की प्रेरणा दी।

उन्होंने कहा कि उपाधि प्राप्त विद्यार्थी राष्ट्र निर्माण में अपनी शिक्षा का उपयोग करें और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकल्प के अनुरूप वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र एवं विश्वगुरु बनाने में सक्रिय भूमिका निभाएं। उन्होंने विद्यार्थियों से राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ आगे बढ़ने का आह्वान किया। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसरों में शोध एवं प्रयोगशालाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि बौद्धिक विकास का प्रमाण व्यक्ति के कार्य और व्यक्तित्व से परिलक्षित होता है। साथ ही विद्यार्थियों को खेलकूद के माध्यम से शारीरिक रूप से सुदृढ़ बनने, नैतिकता अपनाने तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण एवं उसके संरक्षण का संदेश दिया। इस अवसर पर राज्यपाल श्री बागडे ने बृहस्पति भवन के सामने स्थित दो उद्यानों का नामकरण एक भारत श्रेष्ठ भारत विहार एवं संस्कृति विहार करने की घोषणा की।

विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि दीक्षांत समारोह वह क्षण है जब विद्यार्थियों के सपनों को औपचारिक मान्यता मिलती है। शिक्षा ही मानव को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उन्होंने तकनीक और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के युग में भारतीय ज्ञान परंपरा, नैतिक मूल्यों और संवेदनशीलता को बनाए रखने की आवश्यकता बताई।

जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि यह समारोह भारत की प्राचीन शिक्षा परंपरा का गौरवशाली उदाहरण है। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि उपाधि मंजिल नहीं बल्कि उड़ान की शुरुआत है। बदलते समय में समाज और राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप नवाचार एवं अनुसंधान पर कार्य करना आज की आवश्यकता है।

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